मैं सफ़र कर रहा था
खुद से बिछुड़ने के लिए
ये आखिरी सफ़र था
सफ़र के लिए
मैं जिन्दगी भर
बेखुदी में ही जीता रहा
कोई खुदी ही नहीं थी
खुदी के लिए
कुछ रास्ते रो रहे थे
अपनी वीरानगी पर
उन रास्तों पर चल पड़ा में
रास्तों के लिए
मैं जिन्दा हूँ अब तक
मुझे क्या पता
जिन्दगी है जरूरी
जिन्दगी के लिए
आईने चोंधिया गये आज
उसे देख कर
अब चशमा है जरूरी
आइनों के लिए
मैं जिसे ढूंढ़ता था
उसका पता न चला
एक पता चाहिए था
पते के लिए
जख्म दिलके नासूर बन कर
जब बहने लगे
आंसू मेरे निकले
साथ बहने के लिए
क्यों मैंने नाखलक को
खुदा कह दिया
इक दूसरा खुदा चाहिए
इस जहाँ के लिए
खुदाई क्या शै है
जो इसको बता दे
ऐसा खुदा चाहिए
इस खुदा के लिए
गुरु दयाल अग्रवाल
खुद से बिछुड़ने के लिए
ये आखिरी सफ़र था
सफ़र के लिए
मैं जिन्दगी भर
बेखुदी में ही जीता रहा
कोई खुदी ही नहीं थी
खुदी के लिए
कुछ रास्ते रो रहे थे
अपनी वीरानगी पर
उन रास्तों पर चल पड़ा में
रास्तों के लिए
मैं जिन्दा हूँ अब तक
मुझे क्या पता
जिन्दगी है जरूरी
जिन्दगी के लिए
आईने चोंधिया गये आज
उसे देख कर
अब चशमा है जरूरी
आइनों के लिए
मैं जिसे ढूंढ़ता था
उसका पता न चला
एक पता चाहिए था
पते के लिए
जख्म दिलके नासूर बन कर
जब बहने लगे
आंसू मेरे निकले
साथ बहने के लिए
क्यों मैंने नाखलक को
खुदा कह दिया
इक दूसरा खुदा चाहिए
इस जहाँ के लिए
खुदाई क्या शै है
जो इसको बता दे
ऐसा खुदा चाहिए
इस खुदा के लिए
गुरु दयाल अग्रवाल