धरम की झूठी ज्वाला में
न जाने कितने अहसास जले
घर बार जले खलिहान जले
इंसानियत के सारे फरमान जले
ये आग अभी तक बुझी नहीं
आग के मलबे के भीतर
सिसक सिसक कर
हर मजहब के भगवान जले
जल जल कर सब कुछ ख़ाक हुआ
जो बचे वो सौ सौ बार जले
धर्म के ठेकेदारों बोलो
किस मजहब का फरमान है ये
जो इन्सान जले और फिर
मेरे और तुम्हारे भी भगवान जले
-गुरु दयाल अग्रवाल ६.७.२०१०
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