शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

आधा ही रहा हूँ

जिन्दगी के हर सफर  में
आधा ही हासिल रहा हूँ 
आधा ही मिला है पानी मुझको 
आधा मैं प्यासा रहा हूँ 
प्यार भी मुझको मिला तो 
बाँट कर आधा मिला 
आधा जिया है जीवन मैंने 
आधा मरणासन रहा हूँ 
धर्म कर्म का आचरण किया 
अहम को नहीं त्याग पाया 
आधा मैं ज्ञानी रहा हूँ
आधा अज्ञानी रहा हूँ 
बहुत किये हैं पुण्य मैंने 
पाप भी मैंने किये 
सम्पूर्ण ज्ञान के चक्षु खुले हैं 
आधी मर्यादा रहा हूँ 
क्या कोई अवधूत हूँ मैं
जो तुम्हें वशीभूत करता 
आधी अभिलाषा रहा हूँ 
आधी जिज्ञासा रहा हूँ 
बनकर अपना शेष 
मैं जिन्दगी जीता रहा 
आधा हूँ अवशेष अपना 
आधा मैं श्वंसित रहा हूँ  
                

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