शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

कभी कुछ कहो हमसे


कभी कुछ तुम कहो हमसे
कभी तुमसे कहें हम कुछ
तभी तो बात बातों से निकल कर
अपने अंजाम तक पहुंचे

कभी दिल खोल कर तुम हंस पड़ो
मेरी किसी नादान हरकत पर
कभी मैं भी तुम्हारा नाम लेकर
गीत कोई गुनगुनाऊ

कभी दिल को बना कर साज मैं
छेड़ दूं कोई ग़ज़ल
कभी इस साज के तारों को तुम
कुछ इस तरह से झनझनाओ
कि स्वपन भी साकार हो कर
आँख फडफडाने लगें

कभी अहसास के झूले पर तुम
पेंग कुछ ऐसी भरो
कि दिलके सारे टाँके टूट जाएँ
और मैं आँखों में प्यास भर कर
चेतनाओं से अवकाश ले लूं

आओ कर दें कोई वार ऐसा
हम समय के पाँव पर
रह जाए वो अपनी जगह खड़ा का ही खड़ा
और अपलक पलकों से हमको
देखता रहे अवाक् सा


गुरु दयाल अग्रवाल




   

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