कभी कुछ तुम कहो हमसे
कभी तुमसे कहें हम कुछ
तभी तो बात बातों से निकल कर
अपने अंजाम तक पहुंचे
कभी दिल खोल कर तुम हंस पड़ो
मेरी किसी नादान हरकत पर
कभी मैं भी तुम्हारा नाम लेकर
गीत कोई गुनगुनाऊ
कभी दिल को बना कर साज मैं
छेड़ दूं कोई ग़ज़ल
कभी इस साज के तारों को तुम
कुछ इस तरह से झनझनाओ
कि स्वपन भी साकार हो कर
आँख फडफडाने लगें
कभी अहसास के झूले पर तुम
पेंग कुछ ऐसी भरो
कि दिलके सारे टाँके टूट जाएँ
और मैं आँखों में प्यास भर कर
चेतनाओं से अवकाश ले लूं
आओ कर दें कोई वार ऐसा
हम समय के पाँव पर
रह जाए वो अपनी जगह खड़ा का ही खड़ा
और अपलक पलकों से हमको
देखता रहे अवाक् सा
गुरु दयाल अग्रवाल
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