जिन्दगी के हर सफर में
आधा ही हासिल रहा हूँ
आधा ही मिला है पानी मुझको
आधा मैं प्यासा रहा हूँ
प्यार भी मुझको मिला तो
बाँट कर आधा मिला
आधा जिया है जीवन मैंने
आधा मरणासन रहा हूँ
धर्म कर्म का आचरण किया
अहम को नहीं त्याग पाया
आधा मैं ज्ञानी रहा हूँ
आधा अज्ञानी रहा हूँ
बहुत किये हैं पुण्य मैंने
पाप भी मैंने किये
सम्पूर्ण ज्ञान के चक्षु खुले हैं
आधी मर्यादा रहा हूँ
क्या कोई अवधूत हूँ मैं
जो तुम्हें वशीभूत करता
आधी अभिलाषा रहा हूँ
आधी जिज्ञासा रहा हूँ
बनकर अपना शेष
मैं जिन्दगी जीता रहा
आधा हूँ अवशेष अपना
आधा मैं श्वंसित रहा हूँ
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