मेरों ने मुझ को नोचा खरोंचा जाने कहाँ कहाँ से
मैं शमशान में खड़ा रह रह के सोचता था
एक छोटा सा कफन अपने लिए लाऊं तो लाऊं मैं कहाँ से
मेरे लिए थी जिन्दगी मौत से भी बदतर
बहुत शातिर थे वो लुटेरे मुझे लूटा नगाड़े बजा बजा के
अचानक जन्तर मन्तर पर आया जमीन का इक फरिश्ता
मुझको गले लगाया मिलाया मुझकों मेरे हिन्दुस्तान से
1 टिप्पणी:
‘मैं शमशान में खड़ा रह रह के सोचता था
एक छोटा सा कफन अपने लिए लाऊं तो लाऊं मैं कहाँ से
’
पहले इंतेज़ाम कर लेते,.... फिर आते :)
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