शनिवार, 9 अप्रैल 2011

जमीन का फरिश्ता

मैं क्या करूं शिकायत जमीन से आसमान से
मेरों ने मुझ को नोचा खरोंचा जाने कहाँ कहाँ से

मैं शमशान में खड़ा रह रह के सोचता था
एक छोटा सा कफन अपने लिए लाऊं तो लाऊं मैं कहाँ से

मेरे लिए थी जिन्दगी मौत से भी बदतर
बहुत शातिर थे वो लुटेरे मुझे लूटा नगाड़े बजा बजा के

अचानक जन्तर मन्तर पर आया जमीन का इक फरिश्ता
मुझको गले लगाया मिलाया मुझकों मेरे हिन्दुस्तान से

1 टिप्पणी:

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

‘मैं शमशान में खड़ा रह रह के सोचता था
एक छोटा सा कफन अपने लिए लाऊं तो लाऊं मैं कहाँ से


पहले इंतेज़ाम कर लेते,.... फिर आते :)